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रोग की परिभाषा क्या है । What is roga in ayurveda
शरीर के किसी अंग /उपांग की सरंचना का बदल जाना या उसके कार्य करने की क्षमता में किसी प्रकार की कमी आ जाना रोग कहलाता है। जिस व्यक्ति को रोग होता है उसे रोगी कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति को पुराण रूप से तभी स्वास्थ कहा जाता है ,यदि वह शारीरिक ,मानसिक ,सामाजिक ओर धार्मिक रूप से स्वस्थ हो। इनमे से किसी एक अवस्था का शिकार होने पर व्यक्ति को रोगी ,अस्वस्थ अथवा बीमार माना जा सकता है।आयुर्वेद के अनुसार तीन दोषों (vata,Pitta and Kapha dosha) के संतुलन बिगड़ने पर उत्पन्न स्तिथि को रोग कहा जाता है। ओर तीनो की संतुलित स्तिथि को आरोग्य कहा जाता है।
वात दोष/रोग क्या है। Vata,pitta and kapha dosha in hindi
वात दोष वायु ओर आकाश इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह तीनो दोषों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी कार्य वात के कारण ही संभव है। वात के प्रकोप से हमारे शरीर में 80 प्रकार के रोग हो सकते है।
पित्त दोष/रोग क्या होता है । vata,Pitta and Kapha dosha in ayurveda
पित्त दोष ‘अग्नि और जल ‘ इन दो तत्वों से मिलकर बनता है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन्स और एन्ज़इम्स को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे तापमान और पाचन अग्नि जैसी चीजें पित्त द्वारा ही नियंत्रित की जाती है। पित्त के बिगड़ने से शरीर में लगभग 40 प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है।
कफ़ दोष/रोग क्या होता है। Kapha dosha in ayurveda in hindi
पृथ्वी और जल इन दो तत्वों से मिलकर कफ़ दोष बनता है। पृथ्वी के कारण कफ़ में स्थिरता और भारीपन और जल के कारण तैलिये और चिकनाई युक्त गुण आते है। ये दोष मुख्य रूप से छाती और पेट को प्रभावित करता है। कफ की कमी होने पर बाकी के दोनों दोष अपने आप बढ़ जाते हैं तो शरीर में कफ़ का संतुलन बहुत जरुरी है। कफ का संतुलन बिगड़ने पर शरीर में लगभग 20 प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है।